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सूरज छूने का मिशन, 7 साल में 7 चक्कर से टटोलेगा राज

ब्रह्मांड के कई रहस्यों से पर्दा उठाने वाला इनसान अब सूरज को 'टटोलना' चाहता है। आग के इस गोले के रहस्यों को जानने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पहली बार सूर्य के नजदीक से अध्ययन करने के लिए यान का प्रक्षेपण किया। रविवार सुबह प्रक्षेपित नासा ने इस मिशन को ‘पार्कर सोलर प्रोब' नाम दिया है।
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रविवार को प्रक्षेपित पार्कर सोलर प्रोब। – एएफपी

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नयी दिल्ली/वाशिंगटन 12 अगस्त (एजेंसियां)
ब्रह्मांड के कई रहस्यों से पर्दा उठाने वाला इनसान अब सूरज को ‘टटोलना’ चाहता है। आग के इस गोले के रहस्यों को जानने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पहली बार सूर्य के नजदीक से अध्ययन करने के लिए यान का प्रक्षेपण किया। रविवार सुबह प्रक्षेपित नासा ने इस मिशन को ‘पार्कर सोलर प्रोब’ नाम दिया है। असल में आज जिस अभियान पर नासा निकला है, उसकी पृष्ठभूमि साठ साल पहले भारतीय-अमेरिकी खगोलशास्त्री सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने तैयार कर दी थी। उन्होंने ‘सौर पवन’ के अस्तित्व के प्रस्ताव वाले शोधपत्र का प्रकाशन न किया होता तो सूर्य को ‘छूने’ के मिशन की शक्ल कुछ और होती। चंद्रशेखर को 1983 में विलियम एक फाउलर के साथ तारों की संरचना और उनके उद्भव के अध्ययन के लिये भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
अब नासा का यह यान सूर्य के निकट जाकर उसके आसपास के वातावरण का अध्ययन करेगा। नासा का यह अंतरिक्ष यान एक छोटी कार जैसा है। यह सात साल में सात बार सूर्य की सतह से करीब 40 लाख मील की दूरी से गुजरेगा। इससे पहले कभी कोई भी अंतरिक्ष यान सूर्य के इतने करीब से नहीं गुजरा है। वर्ष 2024 तक यह यान 6.4 मिलियन किलोमीटर की दूरी तय कर सूर्य के सात चक्कर लगाएगा।
जीवित वैज्ञानिक के नाम पर पहला मिशन और चंद्रशेखर की याद
यूजीन पार्कर अब पहले जीवित वैज्ञानिक बन गए हैं जिनके नाम पर मिशन है। दरअसल 1958 में पार्कर ने सुझाव दिया था कि सूर्य से लगातार निकलने वाले आवेशित कण अंतरिक्ष में भरते रहते हैं। उनके इस सुझाव को मानने से तत्कालीन वैज्ञानिक समुदाय ने इनकार कर दिया था। आईआईएसईआर कोलकाता के एसोसिएट प्रोफेसर दिब्येंदु नंदी ने बताया, ‘एस्ट्रोफिजिकल जर्नल के वरिष्ठ संपादक ने शोध पत्र के प्रकाशन की मंजूरी दे दी। वह संपादक भारतीय-अमेरिकी खगोल भौतिकशास्त्री सुब्रमण्यम चंद्रशेखर थे।’ फिलहाल नासा के इस यान को थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम से लैस किया गया है। यह पृथ्वी के मुकाबले तीन हजार गुना अधिक गर्मी को सहन कर सकता है। यान का तापमान 29 डिग्री सेल्सियस बना रहेगा।

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